स्वीडिश अध्ययन में तापमान की चरम सीमा को हृदयाघात से होने वाली मृत्यु के उच्च जोखिम से जोड़ा गया है
🔹 परिचय
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में हो रहे उतार-चढ़ाव का असर अब सिर्फ पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली पर भी गंभीर रूप से पड़ने लगा है। हाल ही में स्वीडन में किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन ने यह खुलासा किया है कि बेहद ठंडा या बेहद गर्म मौसम हमारे दिल की सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
इस अध्ययन में यह पाया गया कि तापमान की चरम सीमाएं (Extreme Temperatures), विशेष रूप से अत्यधिक ठंड या गर्मी, हृदयाघात (Heart Attack) से होने वाली मौत के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
🔹 अध्ययन का विवरण
स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट (Karolinska Institutet) और उप्साला विश्वविद्यालय (Uppsala University) के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया।
उन्होंने लगभग 25 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें स्वीडन में दर्ज हजारों हृदयाघात मामलों की जांच की गई।
शोधकर्ताओं ने 1990 से 2015 तक के डेटा को अध्ययन में शामिल किया और पाया कि तापमान में असामान्य बदलाव – चाहे वो बहुत अधिक ठंडा हो या अत्यधिक गर्म – हृदय से संबंधित मौतों की संभावना को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा देता है।
🔹 अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
ठंड के दौरान बढ़ा खतरा:
जब तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, तो हृदयाघात से मरने की संभावना लगभग 10 से 15% तक बढ़ जाती है।
गर्मी भी उतनी ही खतरनाक:
तापमान 30 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर होने पर भी दिल की धड़कन पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे हृदयाघात का खतरा बढ़ता है।
बुजुर्ग और पहले से हृदय रोगी सबसे अधिक जोखिम में:
अध्ययन में पाया गया कि 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोग और जिन लोगों को पहले से दिल की बीमारी, उच्च रक्तचाप या डायबिटीज है, वे तापमान के इन बदलावों के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
मौतें अचानक बढ़ती हैं:
चरम तापमान वाले दिनों के 1–2 दिन बाद हृदयाघात से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी देखी गई।
🔹 यह संबंध कैसे काम करता है?
शोधकर्ताओं के अनुसार, जब शरीर बहुत ठंडे या गर्म वातावरण में होता है, तो उसे तापमान संतुलन बनाए रखने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है।
🧊 ठंड में:
रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं (Vasoconstriction)
रक्तचाप (Blood Pressure) बढ़ता है
हृदय को रक्त पंप करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है
नतीजतन, हृदयाघात की संभावना बढ़ जाती है
☀️ गर्मी में:
शरीर में पानी की कमी (Dehydration) हो जाती है
रक्त गाढ़ा होने लगता है
रक्त परिसंचरण प्रभावित होता है
जिससे दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है
🔹 स्वीडिश शोध की विशेषता
यह अध्ययन इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि स्वीडन जैसे देश में आमतौर पर ठंडा मौसम रहता है, लेकिन फिर भी वहां गर्मी के दिनों में भी मौतों की संख्या बढ़ी पाई गई।
शोधकर्ताओं ने आधुनिक डेटा तकनीक का उपयोग करते हुए स्थानीय तापमान, वायु गुणवत्ता, और जनसांख्यिकीय कारकों (जैसे उम्र, स्वास्थ्य स्थिति आदि) को जोड़कर विश्लेषण किया।
परिणामों से स्पष्ट हुआ कि जलवायु परिवर्तन के चलते भविष्य में ऐसे चरम मौसम की घटनाएं और अधिक होंगी, जिससे हृदय संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ सकते हैं।
🔹 भारत जैसे देशों के लिए चेतावनी
भारत जैसे देशों में, जहां गर्मी और सर्दी दोनों की चरम स्थितियां आम हैं, यह अध्ययन चेतावनी का संकेत है।
यहां हर साल लाखों लोग हीट वेव (Heat Wave) और ठंड की लहर (Cold Wave) से प्रभावित होते हैं।
भारत में पहले से ही हृदय रोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है — और अब तापमान का यह नया खतरा लोगों की सेहत को और ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना सकता है।
🔹
यदि हम मौसम के इन बदलावों से पूरी तरह बच नहीं सकते, तो कुछ सरल उपाय अपनाकर हृदय को सुरक्षित रखा जा सकता है।
🧊 ठंड के मौसम में:
शरीर को गर्म रखें — परतों में कपड़े पहनें
अचानक ठंडी हवा में न निकलें
घर में पर्याप्त तापमान बनाए रखें
नियमित रूप से रक्तचाप जांचते रहें
☀️ गर्मी के मौसम में:
ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं
धूप में काम करने से बचें
हल्का और ढीला कपड़ा पहनें
अत्यधिक परिश्रम से बचें
🔹 डॉक्टरों की राय
स्वीडन के कार्डियोलॉजिस्ट्स का कहना है कि यह अध्ययन यह समझने में मदद करता है कि दिल की बीमारियों के खतरे केवल हमारे खान-पान या जीवनशैली से नहीं, बल्कि पर्यावरणीय स्थितियों से भी जुड़े हैं।
भारत के कई विशेषज्ञों का भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान आने वाले वर्षों में हृदय रोगियों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। इसलिए मौसम के अनुसार सावधानी बरतना और हृदय स्वास्थ्य की नियमित जांच करना बेहद जरूरी है।
- 🔹 आगे की दिशा
इस अध्ययन के आधार पर अब कई देशों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि कैसे स्वास्थ्य नीतियों को बदलते जलवायु पैटर्न के अनुसार ढाला जाए।
स्वीडिश शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि मौसम आधारित स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Weather-Based Health Alert System) शुरू की जानी चाहिए, ताकि लोग समय रहते सावधान हो सकें।
🔹 निष्कर्ष
स्वीडिश अध्ययन ने एक गंभीर सच उजागर किया है – चरम मौसम सिर्फ पर्यावरणीय चुनौती नहीं, बल्कि हृदय के लिए भी जानलेवा साबित हो सकता है।
यह शोध हमें यह याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन का असर केवल ग्लेशियर पिघलने या समुद्र स्तर बढ़ने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे शरीर के भीतर भी घातक प्रभाव डाल रहा है।
इसलिए, अब समय आ गया है कि हम मौसम की मार से खुद को बचाने के लिए जागरूक कदम उठाएं, और अपने दिल की सुरक्षा को जीवन की प्राथमिकता बनाएं।
लेखक की टिप्पणी:
यह लेख लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है ताकि वे अपने हृदय स्वास्थ्य को बदलते मौसम के प्रभावों से बचाने के लिए सतर्क रहें।
